शहीद सम्मान समिति के प्रदेश अध्यक्ष सीताराम सियाग के नेतृत्व में आए प्रतिनिधिमंडल ने रक्षा मंत्री और कानून मंत्री को ज्ञापन सौंपकर शहीद सैनिकों से संबंधित नीतियों में संशोधन की मांग की। परिजनों ने शहीद को मरणोपरांत मिलने वाले वीरता पुरस्कार पर पहला अधिकार माता-पिता को देने, शहीद के स्थायी पते में बदलाव न करने, माता-पिता को भी न्यूनतम अनिवार्य फैमिली पेंशन, पहचान पत्र, कैंटीन कार्ड और आर्मी अस्पतालों में इलाज की सुविधा देने जैसी मांगें रखीं।
प्रतिनिधिमंडल ने रक्षा मंत्रालय की एमपी5 शाखा पर शहीद के माता-पिता के अधिकारों की अनदेखी करने का आरोप लगाया और कहा कि कई मामलों में इस शाखा के फैसलों का पालन नहीं किया जाता, जिसके कारण माता-पिता को न्याय के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाना पड़ता है। उन्होंने एक ऐसी व्यवस्था बनाने की मांग की जिससे माता-पिता, पत्नी और बच्चों को न्याय मिल सके।
सदस्यों ने कहा कि वर्तमान समय में पुरानी नीतियां अप्रासंगिक हो गई हैं और उनमें व्यापक संशोधन की आवश्यकता है। उन्होंने शहीद के वृद्ध माता-पिता की आवश्यकताओं और सामाजिक सम्मान को ध्यान में रखते हुए ‘नॉमिनेशन ऑफ किथ एंड किन’ (NOK) पॉलिसी में बदलाव करने का आग्रह किया। समिति ने बताया कि पिछले वर्ष सरकार ने एक प्रश्न के जवाब में इस प्रस्ताव पर विचार करने का आश्वासन दिया था।
राज्य रक्षा मंत्री संजय सेठ ने प्रतिनिधिमंडल को आश्वासन दिया कि वे इस मामले पर जल्द ही कार्रवाई करेंगे। समिति के जिलाध्यक्ष राजाराम गोदारा और अन्य शहीद परिजन रामस्वरूप कंस्वा, परमेश्वर गोदारा, मेगराज आदि इस मुलाकात में शामिल रहे। प्रतिनिधिमंडल ने बीकानेर सांसद अर्जुनराम मेघवाल का राज्य रक्षा मंत्री से मुलाकात करवाने में विशेष योगदान के लिए आभार व्यक्त किया।