जैसे-जैसे दिन ढलता गया, वातावरण में उत्सव का रंग गहरा होता गया। शाम होते ही महिलाएं सज-धज कर, पारंपरिक परिधानों और आभूषणों से सुसज्जित होकर सामूहिक रूप से कथा सुनने के लिए एकत्रित हुईं।
इस अवसर पर सीमा भोजक ने कजरी तीज के महत्व पर प्रकाश डालते हुए बताया कि यह व्रत भाद्रपद महीने में आता है। महिलाएं पूरे दिन उपवास रखती हैं और शाम को ‘निमड़ी’ (कजरी तीज की पूजा में स्थापित देवी) के समक्ष बैठकर कथा का श्रवण करती हैं। चंद्रमा के उदय होने पर उन्हें अर्घ्य दिया जाता है, जिसके बाद व्रत का पारण किया जाता है।
श्रीमती भोजक ने आगे बताया कि यह व्रत पति की लंबी आयु और उत्तम स्वास्थ्य की कामना के साथ किया जाता है। साथ ही, महिलाएं अपने पीहर (मायके) की कुशलता और समृद्धि के लिए भी प्रार्थना करती हैं।
कजरी तीज का यह पर्व श्रीडूंगरगढ़ क्षेत्र में पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ धूमधाम से मनाया गया। क्षेत्रवासियों ने इस पर्व को मनाकर अपनी संस्कृति और परंपराओं को जीवंत रखने का संकल्प दोहराया। यह पर्व न केवल आस्था का प्रतीक है, बल्कि सामाजिक सौहार्द और सामुदायिक भावना को भी मजबूत करता है।