यह विवाद प्रभुसिंह राजपुरोहित की विरासत में हिस्सेदारी को लेकर है। उनके पौत्र श्रवणसिंह और अन्य परिजनों के बीच संपत्ति के बँटवारे को लेकर मतभेद चल रहा था। सूत्रों के अनुसार, यह विवाद कुछ समय से चला आ रहा था और सुलह की कोशिशें नाकाम रहने के बाद मामला न्यायालय तक पहुंचा।
श्रवणसिंह ने वरिष्ठ सिविल न्यायाधीश, श्रीडूंगरगढ़ के न्यायालय में भूखंड के विभाजन और स्थायी निषेधाज्ञा के लिए वाद दायर किया था। उनकी याचिका में संपत्ति के उचित बँटवारे की मांग की गई थी। इसी बीच, प्रतिवादी बजरंगसिंह और अन्य परिजनों द्वारा विवादित भूखंड पर निर्माण कार्य शुरू कर दिया गया।
इस घटनाक्रम के बाद, न्यायालय ने मामले की गंभीरता को देखते हुए तत्काल कार्रवाई की। वादी श्रवणसिंह के पक्ष में स्टे ऑर्डर जारी करते हुए प्रतिवादी बजरंगसिंह एवं अन्य को भूखंड पर किसी भी प्रकार के पक्के निर्माण, बिक्री और स्वरूप परिवर्तन से रोक दिया गया है।
वादी पक्ष की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मोहनलाल सोनी की सहयोगी अधिवक्ता दीपिका करनाणी ने न्यायालय में अपना पक्ष रखा। उन्होंने बताया कि न्यायाधीश हर्ष कुमार हिसारिया ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद यह आदेश पारित किया है। आदेश में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि विवादित भूखंड को किसी भी प्रकार से हस्तांतरित नहीं किया जाएगा, पक्के निर्माण कार्य पर तत्काल रोक रहेगी और भूखंड के स्वरूप में किसी भी प्रकार का सारभूत परिवर्तन नहीं किया जाएगा।
न्यायालय के इस आदेश से फिलहाल भूखंड पर चल रहा निर्माण कार्य रुक गया है। अब सबकी निगाहें अगली सुनवाई पर टिकी हैं, जिसमें न्यायालय इस संपत्ति में हिस्सेदारी के मुद्दे पर अपना निर्णय सुनाएगा। यह मामला न केवल राजपुरोहित परिवार के लिए, बल्कि उन सभी लोगों के लिए एक सबक है जो पैतृक संपत्ति के विवादों से जूझ रहे हैं। न्यायालय का यह आदेश यह भी दर्शाता है कि कानून की नज़र में हर नागरिक समान है और न्यायपालिका संपत्ति विवादों के समाधान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।