मंदिर के पार्क को रंग-बिरंगे गुब्बारों से सजाया गया था, जो वातावरण में उत्सव का रंग घोल रहे थे। रात करीब 9 बजे भजन संध्या का शुभारंभ हुआ, जिसमें भजन कलाकार सांवरमल कौशिक ने अपनी मधुर वाणी से समां बांध दिया। उनके भजनों पर श्रद्धालु झूम उठे और भक्ति के सागर में गोता लगाने लगे।
जैसे-जैसे रात गहराती गई, उत्सव का उत्साह बढ़ता गया। बड़ी संख्या में श्रद्धालु इस पावन अवसर के साक्षी बनने के लिए एकत्रित हुए थे। रात 12 बजे, जब घड़ी ने भगवान कृष्ण के जन्म का संकेत दिया, तो आसमान आतिशबाजी से जगमगा उठा। इसके बाद श्रीकृष्ण की आरती संपन्न हुई, जिसमें सभी भक्तों ने मिलकर भगवान की स्तुति की।
जन्माष्टमी के इस विशेष अवसर पर मटकी फोड़ कार्यक्रम का भी आयोजन किया गया, जिसमें युवाओं ने बढ़-चढ़कर भाग लिया। बाल कृष्ण को झूले में झुलाया गया और बालक-बालिकाएं राधा-कृष्ण के वेष में सजे-धजे उत्सव का आनंद लेते हुए नजर आए।
अंत में, सभी श्रद्धालुओं को पंजीरी का प्रसाद वितरित किया गया, जिसे पाकर वे धन्य हो गए। यह उत्सव श्रीडूंगरगढ़ में कृष्ण भक्ति और सामुदायिक सौहार्द का एक सुंदर उदाहरण था, जिसने सभी को प्रेम और आनंद के सूत्र में बांध दिया।